श्रीकृष्ण भगवद्गीता में अर्जुन को अपना परिचय देते हुए कहते हैं- “आदित्यों में मैं विष्णु हूँ, रौशनी के स्रोतों में मैं सूर्य हूँ, मरुतों में मैं मरीचि हूँ और नभ में विद्यमान तारों में मैं चन्द्रमा हूँ”
वेदों में मरीचि ब्रह्मा के मानसपुत्र, राजा मनु के परदादा और पृथ्वी पर नियम और समझ की आधारशिला रखने वाले माने जाते हैं। उन्हीं के सम्मान में मरिच्यासन बनाया गया जो अपने नाम के ही अनुसार जीवन में नियम और समझ की रौशनी लेकर आता है।
क्या है इस आसन के अभ्यास की क्रिया, आइये जानें –
- दण्डासन में बैठें।
- अपने बाएँ घुटने को मोड़ें और पंजे को ज़मीन पर रखें। एड़ी को कूल्हों के जितने पास हो सके, रखें।
- दाएं पैर को मज़बूती से सीधा रखें तथा हल्का सा अंदर की ओर झुकाकर रखें।
- आसन के अभ्यास को आसान बनाने के लिए अपने धड़ को दाई ओर घुमाएं तथा बाएँ कंधे को बाएँ घुटने से टिकाएं। ध्यान रखें की शरीर का बायाँ हिस्सा बाई जांघ से टिकी होनी चाहिए। फिर धीरे से आप शरीर को सीधा कर सकते हैं।
- अपने बाएँ हाथ को आगे की ओर सीधा करें तथा इसे इस तरह अंदर की ओर मोड़ें की अंगूठा ज़मीन की ओर तथा हथेली बाई ओर रहे।
- अब बाई बाजू को आगे ले जाते हुए धड़ को आगे की ओर लम्बा करें तथा बाई पिंडली को कांख से पकड़ें।
- सांस छोड़ते हुए बाजू से पैर के बाहरी हिस्से को लपेटें। बायाँ हाटन बाई जांघ और कूल्हों से टिका होगा।
- दोबारा सांस छोड़ते हुए दाएं हाथ को पीठ के पीछे लेकर जाएं। बाएँ हाथ से दाई कलाई पकड़ लें।
- सांस छोड़ें और धड़ को कमर से आगे लेकर जाएं। पेट के निचले हिस्से को सीधा और लम्बा रखें।
- इस अवस्था में 30 सेकंड से 1 मिनट तक रुकें फिर सांस भरते हुए ऊपर आ जाएँ।
- शरीर के दूसरी तरफ के लिए भी इतनी ही अवधि के लिए इस आसन को दोहराएं।
नोट – अस्थमा या दस्त होने पर इस आसन का अभ्यास वर्जित है।
अगर शुरुआत में आपको इस आसन के अभ्यास में मुश्किल हो रही है तो मुड़े हुए कम्बल या पटे पर बैठकर इस आसन का अभ्यास आरंभ करें। अगर पीठ के पीछे हाथ पकड़ नहीं आ रहा हो तो आप एक छोटे टुकड़े को दोनों हाथों से पकड़ सकते हैं।
आइये जानते हैं मरिच्यासन का अभ्यास आपको कौनसे लाभ दे सकता है-
- मन शांत करे। मन में अत्यधिक विचार या असहजता की परेशानी खत्म करे।
- रीढ़ और कंधों की स्ट्रेचिंग करे। इन हिस्सों में रहने वाले किसी भी तनाव को खत्म करे तथा इनमें रक्त संचार बढाए।
- लीवर, किडनी आदि अंदरूनी अंगों की मालिश करे। सुबह इस आसन का अभ्यास अंदरूनी अंगों को जागृत कर इन्हें अपनी पूरी क्षमता से कार्य करने में मदद करेगा।
- पाचन बेहतर करे। अपच, गैस आदि समस्याओं का निवारण कर आपको आहार से भरपूर पोषण लेने में मदद करे।
- शरीर में रक्त संचार बढ़ाकर आपको उर्जावान बनाए।